पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख Sharad Pawar का रवैया हमें अटपटा लग रहा है. एक ओर तो पवार बीजेपी के सख्त खिलाफ हैं और दूसरी तरफ वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी मित्र उद्योगपति गौतम Adani से बार- बार मिल रहे हैं. यह तो ऐसी बात है कि गुड़ खाएं लेकिन गुलगुले से परहेज करें। ऐसा क्यों हो रहा है? क्या इसमें पवार का कोई दांवपेंच है?” हमने कहा, “दांवपेंच के बगैर राजनीति हो ही नहीं सकती. कहावत है कि प्यासा कुएं के पास जाता है.
राजनेता हमेशा किसी बड़े उद्योगपति से मिलते हैं ताकि दोनों एक-दूसरे की जरूरतें पूरी कर सकें और गाढ़े वक्त में एक-दूसरे का ध्यान रख सकें. कोई किसी से एकाध बार मिल लिया तो इसे ज्यादा तूल देने की जरूरत नहीं है.” पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, पिछले 6 महीने में पवार तीसरी बार अदानी से मिले हैं. सबसे पहले इनकी मुलाकात मुंबई में 20 अप्रैल को हुई जिसमें उन्होंने 2 घंटे चर्चा की. इसके बाद 2 जून को उनकी दूसरी बार भेंट हुई.
तब अदानी हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर विपक्ष के निशाने पर थे. ऐसे कठिन समय पर पवार ने अदानी का बचाव करते हुए कहा था कि हिंडनबर्ग केस में विपक्ष की जेपीसी जांच की मांग बेकार है. अभी पुणे के एक व्यवसायी की अहमदाबाद में फैक्ट्री के उद्घाटन के लिए पवार पहुंचे थे. इसके बाद पवार अदानी से मिलने गए और दोनों ने आधा घंटा चर्चा की. हमने कहा, “मेलजोल बढ़ाने के लिए मुलाकातें होती रहनी चाहिए. अदानी बड़े-बड़े प्रोजेक्ट चलाते हैं.
वे चाहें तो मोदी और पवार के बीच मित्रता का मजबूत ” पुल भी बना सकते हैं. पडोसी ने कहा, “निशानेबाज, कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी की उद्योग घरानों से दोस्ती को लेकर ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ का आरोप लगाती रही है. पवार की महाविकास आघाड़ी में कांग्रेस भी शामिल है.” हमने कहा “पवार का कमाल यही है कि वो सभी के साथ सेटिंग कर सकते हैं. राजनीति में दोस्ती दुश्मनी स्थायी नहीं होती बल्कि स्वार्थ स्थायी होते हैं. अदानी के मोदी, पवार, अशोक गहलोत सभी से अच्छे संबंध हैं. पहले यह देश राजा बलि और कर्ण जैसे महादानी की वजह से जाना जाता था. अब इसकी पहचान अंबानी और अदानी से बनी हुई है.’